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पुलकित मन
शनिवार, 7 अगस्त 2010
नन्हे नन्हे पैरो से शरू होती है जिंदगानी
लगते ही मेहँदी पैरो मै बदल जाती है कहानी
कितनी सुन्दर लगती है ये पग्तिया
1 टिप्पणी:
संगीता पुरी
7 अगस्त 2010 को 8:31 am बजे
बहुत सुंदर पंक्तियां !!
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बहुत सुंदर पंक्तियां !!
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